Procecution right or wrong????
raj kumar ji
(Querist) 25 August 2011
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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट सेक्स वर्कर्स को सम्मान के साथ उन्हें अपना पेशा चलाने के लिए 'माकूल हालात' पैदा करने की तैयारी में है। शीर्ष अदालत ने इस बारे में सलाह मांगी है कि सेक्स वर्कर्स को को इज्जत के साथ अपना पेशा चलाने के लिए क्या शर्तें होनी चाहिए।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू और जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा की बेंच ने इस बारे में सुनवाई करते हुए सरकार को यह भी आदेश दिया कि वो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में ऐसे सेक्स वर्कर्स की पहचान करे जो ये पेशा छोड़ना चाहते हैं। अदालत ने ऐसे सेक्स वर्कर्स को सम्मान के साथ जीवन यापन के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग दिए जाने के तरीकों के बारे में भी सलाह मांगी है। इसी बेंच ने इससे पहले सेक्स वर्कर्स के पुनर्वास की भी बात की थी।
दूसरी तरफ, देश की नामी आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने यह कहकर विवाद को हवा दे दी है कि अगर एक हद तक घूस देने को कानूनी दर्जा मिल जाए तो घूस देने वाला घूस लेने वाले शख्स को बेनकाब करने में सरकारी एजेंसियों की मदद कर सकता है
कोर्ट ने सम्मान के साथ जिंदगी जीने के अधिकार को संवैधानिक अधिकार माना है। अदालत ने सीनियर एडवोकेट प्रदीप घोष की अगुवाई में कुछ वरिष्ठ वकीलों और गैर सरकारी संगठनों का एक पैनल गठित किया है जो सेक्स वर्कर्स के सामने आने वाली समस्याओं की पड़ताल करेगा और उनके मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सलाह देगा।
हालांकि वेश्यावृत्ति अपने आप में गैरकानूनी नहीं है लेकिन सेक्स वर्कर्स से सीधे तौर पर जुड़ा कोई कानून नहीं होने की वजह से इस पेशे में शामिल लोगों का अकसर परेशान किए जाने की खबरें आती हैं। पैनल को उन सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की रक्षा किए जाने के बारे में राय देने को कहा गया है जो इस पेशे से जुड़े रहना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से उन लोगों को बल मिलेगा जो इस पेशे को कानूनी दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं।
वेश्यावृत्ति पर पहले क्या हुआ?
उच्चतम न्यायालय ने करीब साल भर पहले अपनी एक टिप्पणी में कहा कि महिलाओं की तस्करी रोकने की दिशा में सेक्स व्यापार को कानूनी मान्यता देना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इससे यौनकर्मियों के पुनर्वास में भी मदद मिलेगी। एक गैर सरकारी संगठन 'बचपन बचाओ आंदोलन' की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि जब आप यह कहते हैं कि वेश्यावृत्ति दुनिया का सबसे पुराना पेशा है और आप इस पर लगाम लगाने में नाकाम हैं तो आप इसे कानूनी मान्यता क्यों नहीं दे देते हैं?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ही 'ओलेगा तेलिस बनाम बंबई नगर निगम' मामले में यह फैसला सुनाया था कि कोई भी व्यक्ति जीविका के साधन के रूप में जुआ या वेश्यावृत्ति जैसे गैर कानूनी और अनैतिक पेशे का सहारा नहीं ले सकता।
कोट
सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का कहना है कि यदि वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा मिलता है तो इससे देश भर में गुपचुप तौर पर चल रहे सेक्स रैकेट को भी मान्यता मिल जाएगी। ऐसा होने से समाज का नैतिक पतन होगा और महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ेंगी। सेक्स रैकेट चलाने वाले लोग बेबश लड़कियों और महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाएंगे।
आपकी बात
दरअसल देश में सेक्स वर्कर्स को दोहरा शोषण झेलना पड़ता है। पुलिस भी उन्हें ही दोषी ठहराती है जबकि एक बड़ा तबका उन्हें पीड़ित मानता है और उसकी सिफारिश ये है कि सेक्स वर्कर्स से पीड़ित की तरह ही व्यवहार किया जाए। क्या आप यौन पेशे को कानूनी मान्यता दिए जाने के पक्ष में हैं? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट की राय क्या बुराइयां रोक पाने में कानून की विफलता की ओर इशारा करती है? अपने विचार नीचे कमेंट बॉक्स में शेयर करें। ??????????
Ravikant Soni
(Expert) 25 August 2011
प्राचीन जंगली मानव में कानून नाम की चीज़ का विकास नैतिक पतन को रोकने के लिए ही हुआ था और आज का सभ्य समाज नैतिक पतन के लिए कानून बनाने जा रहा है. मैं तो कठोरता से इसकी भर्तसना करता हूँ.