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Swami Sadashiva Brahmendra Sar (Nil)     05 December 2009

Listen to Vedic Scriptures (Hindi)

शिव पुराण (इस लिंक/प्रवचन का ट्रैक ९२-९७ ) के अनुसार , देवी पार्वती के तपस्या पूरी होने पर भगवान शिव उनके पास आए दोनों ने एक दूसरे को पति - पत्नी होने का प्रस्ताव तथा स्वीकृति दिया। तब शिव जी ने पार्वती से अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी पार्वती ने कहा - पिछले (सती) जन्म के विवाह में उनके पिता ने उनका हाथ तो शिव जी के हाथ में दिया था किंतु प्रक्रिया अर्थात देवता एवं ग्रह पूजा सम्बन्धी त्रुटि रह गई थी इसलिए वह विवाह सम्बन्ध पूर्णतया सफल नहीं रहा और उनका (सती का ) आत्म दाह पूर्वक दुखद अंत हुआ था दुबारा वह भूल हो , इसलिए विवाह सम्बन्धी सभी प्रक्रियाओं , श्रेष्ठजनों का आशीर्वाद ,ग्रह पूजा इत्यादि का सम्यक अनुपालन होना ही चाहिए



देवी
पार्वती ने शिव जी से कहा कि आप मेरे पिता जी के पास आकर उनसे मेरा हाथ मांगिये शिव जी ने कहा कि मांगने से व्यक्ति लघुता को प्राप्त हो जाता है जब देने वाला स्वयं देने का प्रस्ताव करता है तो देने वाला एवं स्वीकार करने वाला दोनों ही श्रेष्ठ समझे जाते हैं। फिलहाल , देवी पार्वती के पिता को इस बात की सूचना देना और उन्हें संतुष्ट तो करना ही था और कन्या के लिए यह कार्य करना शिष्टाचार के अनुरूप नहीं होता, अतएव, इन विशेष परिस्थितियों में देवी पार्वती के दुबारा आग्रह करने पर शिव जी ने इस कार्य को करने का दायित्व अपने ऊपरलिया।



विभिन्न
ऋषियों द्वारा अनेक प्रयास एवं कई चक्र के वार्तालाप के उपरांत देवी पार्वती के पिता राजी हुए। तत्पश्चात उन्होंने शिव जी के पास अपनी पुत्री पार्वती की जन्म पत्रिका के साथ विवाह का प्रस्ताव भेजा।



यह सनातन परम्परा है कि कन्या पक्ष वर पक्ष के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर जाता है। वर पक्ष कन्या मांगने नहीं जाता। देने वाला कन्या पक्ष ही है और देने वाला निश्चित ही श्रेष्ठ है, यद्यपि कन्या का पिता अपनी कन्या को अपने से श्रेष्ठतर को ही देता है किंतु भारतीय शिष्टाचार में विनम्रता की पराकाष्ठा है। यहाँ स्वीकार करने वाले को श्रेष्ठ समझा जाता है; यहाँ लेने वाला देने वाले को अनुग्रहीत करता है।



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 3 Replies

N.K.Assumi (Advocate)     06 December 2009

Dear Dr.Tripathi, Wish I can also read it in english transcriptt.

Poonam Upadhyay pathak (Advocate)     06 December 2009

Tripathi Sir,  wat u told is truth.

Swami Sadashiva Brahmendra Sar (Nil)     06 December 2009

Dear shri Asumi,

Above story is in relation to role of guardian and rituals in the marriage where couples are already in love . one of the teachings in above message is that -  the procedure, may it be legal or religious, must be followed  and it should not be ignored on the basis of emotions and mutual trust.

Above music album is in hindi , but through above link you may find several other links to listen to  good spiritual discourses on Geeta, Upanishads and other vedic scripttures. you may also visit www.vedpuran.com 


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