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Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy)     10 October 2013

Hindi

दोनो हाथ जोड़ के प्रणाम करता था कभी मिलाने को एक हाथ ले रहा हूँ मैं पगो वाली पग डण्डी पगो से विछुड गई चलने को अब फुटपाथ ले रहा हूँ मैं पूरब का सूरज ना पूरब मे डूब जाए पश्चिम की सभ्यता को साथ ले रहा हूँ मैं औ बचपन मे नहाता था बारिश मे नंगा मैं मुझे क्या पता था फ्रेंच बाथ ले रहा हूँ मैं॥ श्रधेय दादा ओम प्रकाश आदित्य जी की रचना!


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Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy)     10 October 2013

मोर करते हैं शोर ढोर खुले चरते है चोर भी स्वतंत्र डोलते है मेरे देश में; आत्मा का अनमोल धन बेच कर लोग सोने की दुकान खोलते हैं मेरे देश में, जनता को न्याय की तुला पे नेता तोलते है नेताओं को सिक्के तोलते है मेरे देश में; गधे गद्दीयों पे बैठे काग वाँचते पुराण उल्लू अंग्रेजी बोलते हैं मेरे देश में!

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