अंतर्गत धारा 143 एवं 164 जेड0ए0 एल0आर0एक्टः-
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Anonymous
(Querist) 23 July 2018
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अंतर्गत धारा 143 एवं 164 जेड0ए0 एल0आर0एक्टः-
रेहननामें के आधार पर भूमि के मालिक द्वारा क्रमशः 3 नम्बरो पर कब्जा व मालिकाना हक 1966 में हमारे पिता जी को दे दिया गया था, रेहननामें में दो लोगों को गवाह भी बनाया गया था। 1989 में भूमि के पूर्व मालिक की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्रों द्वारा 1993 में मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर कर दिया गया, जिसमें 1993 में सुलहनामे के आधार पर पुनः भूमि पर स्वामित्व हमारा माना गया। सुलह नामें में हमें एक नम्बर पर अपना स्वत्व रखते हुए दो नम्बरों पर अपना अधिकार छोडने की शर्त रखी गयी। जिसे हमारे पिता द्वारा मान लिया गया। तत्पश्चात प्रतिपक्षी द्वारा पुनः 1994 में मुकदमा दायर किया गया और 1995 में पुनः सुलहनामें में भूमि पर हमारा स्वत्व स्वीकार किया। 1995 में पुनः पूर्व भूमालिक के पुत्रों में से एक के पुत्र अर्थात पौत्र ने एक अपंजीकृत वसीयत के आधार पर अपील किया कि उसके दादा ने उसे उक्त विवादित नम्बर को उसे वसीयत किया है। जिस पर पुनः 1998 में अदालत द्वारा आदेश पारित करते हुए पुनः हमारा स्वामित्व स्वीकार किया और प्रतिपक्षी की अपील खारिज करते हुए हमारी प्रापर्टी पर प्रतिपक्षी द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करने का आदेश पारित किया । कोर्ट द्वारा हमारे पक्ष में इंजक्शन स्यूट //स्थायी निषेधाज्ञा// और इजरा का आदेश भी किया जा चुका है।
प्रतिवादी द्वारा पुनः तजबीजशानी प्रार्थना पत्र 2008 में विलम्ब से दाखिल करते हुए सबूतों एवं रूलिंग की समस्त प्रतियों को हमारी पत्रावली से गायब करवा दिया गया और बिना हमारा पक्ष सुने कोर्ट द्वारा 1998 के आदेश को निरस्त करते हुए तजबीजशानी प्रार्थना पत्र को स्वीकार कर लिया गया। तत्पश्चात हमारे द्वारा राजस्व परिषद इलाहाबाद में अपील किया गया जिसमें अदालत द्वारा प्रतिपक्षी की तजबीजशानी अपील को कालवाधित मानते हुए और गुण दोषों के आधार पर हमारे पक्ष में निर्णय देते हुए 1998 का आदेश जो हमारे पक्ष में था पुनः कायम कर दिया गया ।
प्रतिपक्षी द्वारा पुनः हाईकोर्ट में अपील कर उक्त आदेश पर स्टेटस को ले लिया गया है।
अब हमारे द्वारा इसमें क्या कार्यवाही किया जाना चाहिए? मार्गदर्शन करें ।