in the case of Payal Agarwal Vs. Kunal Agarwal III (2014) DMC 122 Raj., the Rajasthan High Court delved upon this issued. In this case, the Magistrate granted visitation rights. Later on Family Court under Sectin 7 of the Act passed certain orders contra to the magistrate's orders. Before the High Court, the question came up, which order has got override effects. It was held that when family court exists in the area, then magistrate does not have power to pass orders under Section 21 of DV Act..
Recently Bombay High Court has also passed an order in July 2018 and said that Metropolitan magistrate can pass the child visitation under 21 of DV act.
I am appearing party in person in my DV case and filed the application under 21 of DV act in MM court at jodhpur rajasthan and Magistrate said that the application will be rejected as being established family court juridiction in vogue, MM court can not entertain this application under sec 21 of DV act. Respected seniors i need your opinion and directions in this regard.
MM court also asking me to reply the application of 23 of DV act, i want to answer it late as the evidence in my 498a/406 cases is also going on.i want to use those evidence in my reply to 23 DV act. Kindly suggest how to deal with it as iam already paying maintenance to wife and child under section 24 of Hindu Marriage Act.
A lady has made an income certificate on Rs 10 Non judicial stamp paper to support his application of housing scheme and then her husband submitted her above said income certificate in family court in maintenance case to show her income there woman denied in writing that she has not made any such income certificate. Sir what criminal action can be taken against that lady or stamp vendor. kindly suggest both criminal and civil action which can be initiated and which is the forum.
Sir
My divorce case is pending in Family court jaipur and I have filed a case for child custody and interim access to child under sec 26 HMA 1955 and it has been registered as seperate and independent case. Now opposite party Adv has opposed by Appl under order 7 rule 11 that it can only be filed in divorce case as a simple Application. Kindly provide citation or suggestions to support of this.
I have heard that it can be run independent in family court.
रामलाल को राजस्थान आवासन मण्डल से एक आवासीय मकान 1996 में आवंटित हुआ और रामलाल ने 1997 में एक आम-मुखत्यरनामा नोटरीसुदा करके कमलदेवी को मकान के अधिकार दिये और कमला देवी ने रामलाल के जीवित होने के समय अपनी सगी बहन सरस्वती को 1997 में ही एक आम-मुखत्यरनामा नोटरीसुदा करके दिया । रामलाल की मृत्यु 1998 में हो गयी और रामलाल अविवाहित था और उसके कोई वारिस नहीं हैं । सरस्वती देवी का 1998 से उक्त मकान पर कब्जा हैं ।
मेरे द्वारा उक्त मकान को सरकारी संपति घोषित करने का वाद जिला कलेक्टर जोधपुर में अप्रेल 2017 में लगाने पर कमलदेवी ने बहेसियत विक्रेता आम-मुखत्यरनामा रामलाल उक्त मकान का रजिस्टरड बेचाननामा जून 2017 करते हुए सरस्वती देवी को बेच दिया । जिला कलेक्टर जोधपुर ने मेरा वाद खारिज कर दिया कि बेचान नामा हो चुका हैं और रजिस्ट्री को निरस्त करने का पावर उनके पास नहीं हैं ।
मेरे द्वारा एक FIR अंतर्गत धारा - 420, 120बी, 467, 471, 474 कमलदेवी, सरस्वती देवी दर्ज करवाने पर पुलिस ने भी बिना तथ्य ध्यान रखे और जांच किये कोर्ट में गलत रिपोर्ट इस आधार पर जमा कर दी कि सरस्वती देवी मेरी सास हैं और सरस्वती देवी की पुत्री मेरी पत्नी हैं और हम दोनों के बीच पारिवारिक विवाद कई न्यायालयों में विचारधीन हैं ।
1 मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या यह हस्तांतरण वैध हैं ?
2 उक्त संपति का कोई वारिस नहीं हैं इसको सरकारी संपाति कैसे घोषित करवाया ज सकता हैं ?
3 क्या कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध राजस्थान राजस्व बोर्ड अजमेर के अधिकार क्या हैं और क्या इसमे अपील पोषणीय होगी ?
4 मेरा उक्त संपाति से कोई लेना देना नहीं हैं और ना ही मैं रामलाल का वारिस हूँ और यही आधार सब जगह मेरी सही रिपोर्ट को भी गलत बना देता हैं जबकि काबिज व्यक्ति कई ओर संपतियों पर भी इसी प्रकार के कब्जा किये बैठे हैं । रामलाल की हत्या भी हुई हैं इसको कैसे साबित करवाया जाए ?
उक्त रजिस्ट्रेड़ बेचाननामा को केंसिल कैसे करवाया जाए ? मुख्य आधार क्या होने चाहिए ?
Sir,
District collector has rejected the escheat proceeding on ground that -
1. Although the original owner has died in 1998 and a notarised POA was given in favour of "A" before 2 months of his death.
2. "A" executed the POA by Selling the property in 2017 to "B". so the district collector has no power to cancel the Sale deed registration. The matter is not fit to proceed under escheat.
I also registered the complaint under IPC 467, 120b, 471, 474, 34 etc and FIR also registered in 2018.
sir
How to file a writ in Rajasthan High court and what points should be in writ.
Kindly provide your valuable guidence.
Respected sir
Wife again file 2nd transfer application to transfer divorce case pending in barmer to family court Jodhpur. Rajasthan High Court has raised that this 2nd appl is not maintanable u/s 11 CPC as "Resjudicata".
Wife's first appl was rejected in 2015 and now she again filed in 2018.
Next hearing is on 09/01/18.
Kindly suggest any ruiling on this issue to reject the transfer and speedy trial direction please.
मैं भारतीय सेना में 12 वर्ष से कार्यरत हूँ मेरा वैवाहिक विवाद कोर्ट में पिछले 4-5 साल से विचारधीन हैं। इसी क्रम में मेरे द्वारा बतौर मुख्य शिकायतकर्ता एक परिवाद 156-3 में कोर्ट में पेश कर आरोप अंतर्गत धारा 380, 386, 406, 420, 506 भारतीय दंड संहिता में एक मुकदमा अप्रेल 2017 में जोधपुर थाने में दर्ज हुआ था। इसमे मैंने मेरी अलग रह रही पत्नी पर मेरा मोबाइल, कुछ व्यक्तिगत सैन्य दस्तावेज़, मेरे शैक्षिक दस्तावेज़ ले जाने का आरोप था । इसमे मेरे 2 भाई और 2 भाभी और मेरी माता जी के भी ब्यान करवाए थे (सभी पारिवारिक सदस्य गवाह थे) जिसमे भी उनके गहने व जेवरात ले जाने का भी आरोप था । घटना के घटित होने की तिथि 3-4 साल पहले की बताई थी । पुलिस जांच अधिकारी द्वारा हम सभी के ब्यान आदि लेकर उसके बाद आगे की कोई खास जांच नहीं की और परिवाद पारिवारिक बताते हुए False रिपोर्ट बताते हुए पेश कर दी हैं । मुझे इस बारे में पुलिस ने कुछ नहीं बताया था कि पुलिस False Report दे चुकी हैं। उक्त प्रकरण में जांच अधिकारी भष्ट था और यह पैसे लेकर किया गया काम हैं । अब इसमें एफ़आर पेश हुए 2 महीने हो चुके हैं । मैं इस मामले की दुबारा जांच और जांच अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही के साथ मामले में सख्त कार्यवाही चाहता हूँ । प्रोटेस्ट पिटिशन में क्या लिखा जाए कि मामला दुबारा जांच में जाए । पुलिस कुछ नहीं करती । कानून की दुर्गति कर दी हैं । क्या इस संबंध में कोई आपराधिक रिट याचिका राजस्थान उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जा सकती हैं ? कृपया इस संबंध में कोई न्यायिक प्रक्रिया व दृष्टांत और अन्य कोई रास्ता बताये । आपकी अति कृपा होगी ।
रामलाल (ST / SC) कार्य – मोची को 1997 में अल्प आय वर्ग में राजस्थान आवासन मण्डल से एक आवासीय मकान जोधपुर में मिला । रामलाल अविवाहित था और इसके कोई वारिस नहीं हैं । रामलाल की मृत्यु (हत्या की आशंका) 1998 में हुई । एक OBC वर्ग का परिवार (मुखिया – A उसकी पत्नी – B) उस मकान में पिछले 10-15 साल से रह रहा हैं (मैं इनका दामाद हूँ दहेज व गुजारा भत्ता के झूठे केस मुझपे कर रखे हैं) मेरे द्वारा इस मकान पर अप्रेल 2017 में राजगामी संपति (Escheat) का वाद जिलाधीश कार्यालय में लगाने पर काबिज परिवार के पारिवारिक रिश्तेदार C (A का सगा भाई) व उसकी पत्नी - D (B की सगी बहन) ने एक 1997 का एक अपंजीकृत व नोटराइज्ड आम-मुखत्यरनामा (फर्जी प्रतीत होता हैं व इसके अनुसार रामलाल ने अपने सारे अधिकार D को दे दिये थे) के आधार पर उस मकान की रजिस्ट्री जून 2017 में सीधे B को कर दी गयी । मुझे इस संबंध में एक स्थानीय समाचार पत्र में राजस्थान आवासन मण्डल द्वारा छापे नोटिस से ज्ञात हुआ कि राजस्थान आवासन मण्डल को प्राप्त आवेदन में विक्रय हस्तांतरण मूल आवंटी के नाम से निरस्त कर B के पक्ष में करने हेतु आपतियाँ मांगी गयी थी जो उसी दिन पेश की गयी । उक्त दोनों ही परिवार पहले भी ऐसे ही दो केस हार चुके हैं और ज़मीनों पर इस प्रकार से कब्जे करने के आदि रहे हैं, जिसके बाद प्रतिपक्ष ने Escheat Proceeding में रजिस्ट्री की फोटोप्रति पेश की हैं । मैं जानना चाहता हूँ कि –
1. क्या अपंजीकृत व नोटराइज्ड आम-मुखत्यरनामा देने वाले रामलाल की मृत्यु के 15 साल बाद भी वह वैध हैं क्या इस आधार पर उसका निसपादन कर रजिस्ट्री करवाई जाना वैध हैं ?
2. क्या D को उक्त अपंजीकृत व नोटराइज्ड आम-मुखत्यरनामा के आधार पर उक्त मकान का विक्रय हस्तांतरण रामलाल (मृत्यु के बाद) से B को करने का अधिकार प्राप्त हैं ?
3. मैंने एक परिवाद 467, 471, 420, 120-B में देने पर उस पर कार्यवाही CRPC 200-202 में ली गयी हैं । मैं (OBC), रामलाल (SC) का वारिस नहीं हूँ इस दशा में रामलाल के साथ हुई धोखाधड़ी को न्यायालय में केसे दर्ज करवा सकता हूँ ?
4. उक्त रजिस्ट्री को केसे निरस्त करवाया जा सकता हैं ?
5. Escheat Proceeding के चलते इस प्रकार से रजिस्ट्री करवाना वैध हैं ?
6. क्या इस संबंध में बेनामी संपति की कार्यवाही की जा सकती हैं कृप्या प्रक्रिया से अवगत कराये ।
7. उक्त संपति का आवंटन किसी SC के व्यक्ति को हुआ था क्या इसका हस्तांतरण कानूनी रूप से वैध हैं ?
Respected sir,
LMV vehicle "Duster" purchased by finance and loan did not paid and vehicle run more than 60000+ KM, later on complaint, the said vehicle seized by RTO and now in police custody.
Sir, What other criminal action can be taken against such defaulters by financer or by RTO...?
If RTO and Financier does not initiate any action then what action can be taken by Complaintant against him...?
Kindly suggest IPC sections against which such defaulters can be prosecuted..?
125 crpc interim reply closed without reply by respondent
धारा 125 का जो केस 2017 से लगा है उस मामले में मैंने आज से 3 महीने पहले से 482 लगा रखा है सीआरपीसी राजस्थान हाई कोर्ट में जिसमें मैंने हाईकोर्ट में कहा है कि सेक्शन 24 हिंदू विवाह अधिनियम में पहले से ही वर्ष 2014 से महिला ₹5000 गुजारा भत्ता प्राप्त कर रही है और वर्ष 2017 में महिला द्वारा घरेलू हिंसा और बाद में 125 सीआरपीसी का केस किया गया है क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम अधिनियम के प्रावधान उपरोक्त दोनों घरेलू हिंसा और 125 सीआरपीसी से ऊपर है इसलिए वह केस दोनों चलने योग्य नहीं है अब इस मामले का फैसला आने वाला था तब तक मैं इसको खींचना चाहता था इसलिए मैं इसका जवाब नहीं दे रहा था आज मैंने तीन प्रार्थना पत्र लगाए थे जिससे जज गुस्सा हो गया वह तीन प्रार्थना पत्र निम्नलिखित है कि
1- सीआरपीसी 91 प्रार्थना पत्र महिला के तीन बैंक खाता है जिन की स्टेटमेंट मंगवाई गई है
2 - बच्चे से मिलने के लिए प्रार्थना पत्र दिया 125 सीआरपीसी जिस पर जज ने कहा कि बच्चे से मिलने का कोई प्रावधान 125 सीआरपीसी में नहीं है हालांकि मैं यह चीज पढ़कर गया था मैंने कहा कि सर आप मुझे एक बार तो मिलना करवा सकते हो विजिटेशन का तो प्रावधान है जिस पर जज ने कहा कि आप बाहर से लिखवा कर लाते हो और फालतू की एप्लीकेशन लगाते हो यह मैं अभी खारिज कर देता हूं और तुरंत खारिज कर दी
3- तीसरा प्रार्थना पत्र मैंने लगाया था कि प्रकरण अंतर्गत धारा 498 ए और 406 भारतीय दंड संहिता में अभी महिला के जिरह चल रही है अतः उस प्रकरण में महिला का साक्ष्य पूर्ण होने तक हमें जवाब प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाए जिसे जज ने कहा कि मैं नहीं मानता और आपको हजार रुपे पर अंतिम अवसर दिया गया था पहले जो कि आपने नहीं दिया है इसलिए आप का अंतिम अवसर बंद करते हुए सीधे बहस अगली तारीख को 15 मई 2019 को होगा
इस अन्तरिम रेप्लाई को केसे पुनः खोला जाए ।